Friday, November 19, 2021

कृषि कानून....बस भारत जीत जाये ।

अनावश्यक रूप से लाया गया अध्यादेश  व बने कानून ,अनावश्यक  प्रक्रिया से रद्द हो गये ।

क्या बचा....??

पिछले साल केंद्र सरकार के द्वारा  अध्यादेश के माध्यम से बनाये गये तीन कानून ,जिसके चलते पिछले लगभग 400 दिनों से देश में एक वर्ग आंदोलन करता रहा । आंदोलन को राजैनतिक वर्ग ने  हथिया लिया , खालिस्तानियों के झंडे लहराये गये ....गणतन्त्र दिवस पर लाल किले पर आतंक फैलाया गया । हाइवे  दबाये  गये..... कितने किसान इस आंदोलन के नाम पर बीमारी ...आत्महत्या के कारण मृत्यु को प्राप्त हुए ....व्यापारों को नुकसान हुआ पर आंदोलन चल रहा था....क्या क्या नहीं हुआ.....देश मे आंदोलन था और देश विदेश की का हर अजूबा आंदोलन के माध्यम से अपना हित साध रहा था.....कोई कोई तो बक्कल ही उतार रहा था ।

अपना तो पहला ही मत था कि इस तरह कानून आना नहीं चाहिये था, आ गया तो वापस नहीं होना चाहिये था.....पर एक प्रश्न जरूर था....क्या करें जब आंदोलन किसी समाज या वर्ग का बन गया ? क्या करें जब आंदोलन को संवेदनशील आधार से जोड़ दिया गया ? जिन के पास सैकड़ों बीघा की खेती है , आनन्द है वे .…..चलो छोड़ो ।

आज गुरु नानक देव जी के जन्मोत्सव पर प्रधानमंत्री ने खुद इन कानूनों को वापस लेने की घोषणा कर दी .....कुछ ने कहा रणछोड़ , किसी ने कहा हार गये , तो किस ने कहा बहुत बढ़िया ....अपना अपना नजरिया और अपना अपना विचार ।

पर जब एक पूर्ण बहुमत की सरकार का प्रधानमंत्री कहे कि.... माफी और शायद वे लोगों को समझा नहीं पाये .....किसानों के लिये बिल था और राष्ट्र के लिये वापसी है.....तो समझ जाइये की राजनैतिक रूप से ज्यादा विषय ओर भी है । जो भी हो..... वैसे मेरा मानना है इस आंदोलन से कुछ चीजें स्पष्ट हुई:-

1) हमारे देश मे अभी भी वाम मार्गी आंदोलन प्रभावी है
2) देश के अंग भंग करने वाली इच्छा शक्ति सक्रिय है
3) आंदोलन को जाती - समूह से जोड़ा जा सकता है
4) राजनैतिक नेतृत्व अधीरता में गलती कर जाता है

पर प्रश व जिज्ञासा यह है की:-

1) क्या आंदोलन खत्म हो जाएगा ?
2) लाल किले के अपराधियों का क्या होगा ?
3) विदेशी फंडिंग के स्रोतों का क्या होगा ?
4) किसानों व इनकी फसलों के दलालों की भूमिका क्या रहेगी ?
5) क्या किसान कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग नहीं करेगा ?
6) क्या मंडी व मंडी के आढ़तियों का खेल वैसा ही रहेगा ?

शायद अब कोई नया आंदोलन खड़ा हो कि किसानों को मध्यस्तों से बचाओ .....पर उस आंदोलन को जाती- समूह से नहीं जोड़ा जा सके और शायद उसके लिये फंडिंग न हो .....अपन को क्या ? न खेत...न खलियान ।

सरकार ने गुरु पर्व पर कानून वापसी की घोषणा कर , राजनैतिक वर्ग पर अपना निशाना लगाया है....कितना लगा यह समय बतायेगा पर यह तय की भारत मे सरकारों की टक्कर का प्रभावी वर्ग जाती- समूह हैं बशर्ते कि उस सरकार को उस वर्ग में हित हो ।


जिस वर्ग को जैसा लगा उसे उसी रूप में बधाई....सब खुश है...कौन जीता कौन हारा ....यह समय तय करेगा ...बस भारत जीत जाये.... इस आंदोलन ने बहुत से रूप दिखा दिये.... बहुत से प्रकार सामने ला दिये......

बस भारत जीत जाये ।





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