Monday, December 13, 2021

संकल्प सिद्धि..... काशी गौरव

आज का दिन है संकल्प सिद्धि का....गौरव को पुनः गौरवान्वित करने का 

सत्तायें कभी स्थाई नहीं होती और भारत सभ्यता में राजा कभी इतिहास के केंद्र बिंदु नहीं रहे... भारत इतिहास - सभ्यता केवल उनको अपने अंदर स्वर्णिम शब्दो मे जगह देता आया है जिन्होंने भिन्नता के साथ इतिहास को नई दिशा दी हो ।

शायद परम् सत्ता की ही कृपा है कि वर्तमान इतिहास में एक चयनित प्रशासक ,भारत की सभ्यता को  उसके गौरव के साथ पुनः स्थापित कर रहे हैं ....


अयोध्या में श्री राम मंदिर शिलान्यास...
काशी में काशी विश्वनाथ मंदिर का नये रूप में रूपांतरण का उदघाटन....

यूँ ही हर किसी के भाग्य में इतने बड़े कार्य करने का समय नहीं आता है ,कुछ तो है निराला ही...

प्रधानमंत्री-मुख्यमंत्री कई बने और कई बनेंगे पर मोदी जी और योगी जी........ महारानी अहिल्या बाई होल्कर  , महाराजा रणजीत सिंह , सरदार पटेल के साथ आप भी भारत की सभ्यता को पुनः उसके गौरव में स्थापित करने के लिये सदा सदा के लिये अजर अमर हो गये ।

विदेशी आक्रांताओं ने हमारे धर्म-सभ्यता स्थानों को चुन चुन कर निशाना बनाया था.... उनका ध्येय किसी धर्म को कुचलने से ज्यादा हमारी आस्था- विश्वास- गौरव पर चोट  पहुँचाना था....वे कुछ हद तक सफल भी रहे ...पर मोदी- योगी की जोड़ी ने पुनः समय चक्र को घुमाया है , अयोध्या के बाद काशी... गौरव की पुनः स्थापना है  ।
मन आनंदित है ।

हर हर महादेव ।

Friday, November 19, 2021

कृषि कानून....बस भारत जीत जाये ।

अनावश्यक रूप से लाया गया अध्यादेश  व बने कानून ,अनावश्यक  प्रक्रिया से रद्द हो गये ।

क्या बचा....??

पिछले साल केंद्र सरकार के द्वारा  अध्यादेश के माध्यम से बनाये गये तीन कानून ,जिसके चलते पिछले लगभग 400 दिनों से देश में एक वर्ग आंदोलन करता रहा । आंदोलन को राजैनतिक वर्ग ने  हथिया लिया , खालिस्तानियों के झंडे लहराये गये ....गणतन्त्र दिवस पर लाल किले पर आतंक फैलाया गया । हाइवे  दबाये  गये..... कितने किसान इस आंदोलन के नाम पर बीमारी ...आत्महत्या के कारण मृत्यु को प्राप्त हुए ....व्यापारों को नुकसान हुआ पर आंदोलन चल रहा था....क्या क्या नहीं हुआ.....देश मे आंदोलन था और देश विदेश की का हर अजूबा आंदोलन के माध्यम से अपना हित साध रहा था.....कोई कोई तो बक्कल ही उतार रहा था ।

अपना तो पहला ही मत था कि इस तरह कानून आना नहीं चाहिये था, आ गया तो वापस नहीं होना चाहिये था.....पर एक प्रश्न जरूर था....क्या करें जब आंदोलन किसी समाज या वर्ग का बन गया ? क्या करें जब आंदोलन को संवेदनशील आधार से जोड़ दिया गया ? जिन के पास सैकड़ों बीघा की खेती है , आनन्द है वे .…..चलो छोड़ो ।

आज गुरु नानक देव जी के जन्मोत्सव पर प्रधानमंत्री ने खुद इन कानूनों को वापस लेने की घोषणा कर दी .....कुछ ने कहा रणछोड़ , किसी ने कहा हार गये , तो किस ने कहा बहुत बढ़िया ....अपना अपना नजरिया और अपना अपना विचार ।

पर जब एक पूर्ण बहुमत की सरकार का प्रधानमंत्री कहे कि.... माफी और शायद वे लोगों को समझा नहीं पाये .....किसानों के लिये बिल था और राष्ट्र के लिये वापसी है.....तो समझ जाइये की राजनैतिक रूप से ज्यादा विषय ओर भी है । जो भी हो..... वैसे मेरा मानना है इस आंदोलन से कुछ चीजें स्पष्ट हुई:-

1) हमारे देश मे अभी भी वाम मार्गी आंदोलन प्रभावी है
2) देश के अंग भंग करने वाली इच्छा शक्ति सक्रिय है
3) आंदोलन को जाती - समूह से जोड़ा जा सकता है
4) राजनैतिक नेतृत्व अधीरता में गलती कर जाता है

पर प्रश व जिज्ञासा यह है की:-

1) क्या आंदोलन खत्म हो जाएगा ?
2) लाल किले के अपराधियों का क्या होगा ?
3) विदेशी फंडिंग के स्रोतों का क्या होगा ?
4) किसानों व इनकी फसलों के दलालों की भूमिका क्या रहेगी ?
5) क्या किसान कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग नहीं करेगा ?
6) क्या मंडी व मंडी के आढ़तियों का खेल वैसा ही रहेगा ?

शायद अब कोई नया आंदोलन खड़ा हो कि किसानों को मध्यस्तों से बचाओ .....पर उस आंदोलन को जाती- समूह से नहीं जोड़ा जा सके और शायद उसके लिये फंडिंग न हो .....अपन को क्या ? न खेत...न खलियान ।

सरकार ने गुरु पर्व पर कानून वापसी की घोषणा कर , राजनैतिक वर्ग पर अपना निशाना लगाया है....कितना लगा यह समय बतायेगा पर यह तय की भारत मे सरकारों की टक्कर का प्रभावी वर्ग जाती- समूह हैं बशर्ते कि उस सरकार को उस वर्ग में हित हो ।


जिस वर्ग को जैसा लगा उसे उसी रूप में बधाई....सब खुश है...कौन जीता कौन हारा ....यह समय तय करेगा ...बस भारत जीत जाये.... इस आंदोलन ने बहुत से रूप दिखा दिये.... बहुत से प्रकार सामने ला दिये......

बस भारत जीत जाये ।





Sunday, November 14, 2021

बाल दिवस .....कभी तो अपना भी था ।

बाल दिवस घोषित है अतः सभी को बाल दिवस की शुभकामनाएं । आज नहीं , तो कभी तो हम सब बच्चे थे ही ,बस उसी बचपन की याद में बाल दिवस की शुभकामनाएं ।

जब छोटे थे ,तो स्कूल में 14 नवम्बर के आस पास बाल मेला लगता था, बच्चों के द्वारा- बच्चों के लिये मेला । अच्छी तरह याद है , मेले में स्टॉल लगाते थे....टॉफी, चॉकलेट , टमाटर - सलाद चाट और समोसे..... एक समोसे के टो टुकड़े और दो दोने चाट तैयार ।

    हाथ रिक्शा पर चलने वाले सरदारजी की  सलाद चाट  पूरे शहर में प्रसिद्ध थी , तो अपनी  बाल मेले की दुकान के लिये दोस्तों के साथ इन्हीं से कुछ मसाला खरीदते थे और इसी में अंडे वाले कि दुकान से मसाला ला कर मिला लेते थे..... आखिर  व्यापार में बजट बहुत बड़ा विषय होता था । 7 दिन चलने वाले इस मेले अपनी पूर्व बचत पूँजी होती थी और मेले से हुई  बचत आने वाले  दिनों में खुद की दावत का जुगाड़ । 

साथ ही विद्यालय की प्रार्थना सभा मे बाल दिवस पर गुरु जनों के भाषणों के बीच कुछ विधार्थियो की कविता - भाषण औऱ जिंदाबाद । यही- इतना सा था बाल दिवस ।

पर समझ कभी नहीं आया, कि नेहरू जी चाचा क्यूँ घोषित हुए औऱ क्यूँ उनके जन्म दिन को बाल दिवस बना दिया । सम्भवतः राजनीति के किसी अनुयायी ने अपने नम्बर बनाने लिए इस दिन को बच्चों के नाम कर दिया ।

जिस देश मे भक्त प्रह्लाद , तर्कशील नचिकेता , वीर लव कुश , महान बलिदानी साहिबजादे ( गुरु गोविंद सिंह जी के पुत्र ) , शहीद खुदीराम जैसे......और भी बहुत सारे अनुकरणीय बच्चों की श्रंखला हो वहाँ एक खालिस राजनेता के नाम पर बाल दिवस ????? अपनी तो समझ से बाहर है , आप के समझ आता हो तो बताइये......

खैर तब तक जब तक कि 14 नवम्बर बाल दिवस है तब तक अपने खुद के बचपन के लिये शुभकामनाएं.....बचपन जिंदा रहेगा तो हम जिंदा रहेंगे । 

हाँ आप ने  बचपन मे बाल दिवस कैसे मनाया जरूर याद कर लेना और  यादें साझा कर लोगे तो लगेगा कि यादें - याद हैं ।


Saturday, November 13, 2021

लिखना तो है....

ब्लॉग से फेसबुक पर चलते हुए वापस ब्लॉग पर । अपनी बात को अपने  ही शब्दों में लिखने का तरीका .....फेसबुक के लंबे सफर के बाद ,लगा कि ब्लॉग ही सही है । हर किसी की अपनी राय- विचार- द्रष्टि है पर मेरे शब्दों में फेसबुक तात्कालिक प्रतिक्रिया का साधन है और ब्लॉग शब्दों को सहेज कर रखने की " किताब " ।

लिखना बहुत जरूरी है, लिखने से ज्यादा खुद के भाव को प्रकट करना ज्यादा जरूरी है । इस लिए नहीं कि मन के भावों का बाजार में कोई महत्व देगा ,  बल्कि इस लिये की भावों  को  कहीं लिखा नहीं, अभिव्यक्त नहीं किया तो भावों का भाव क्या रहेगा । यहाँ भी अपनी अपनी दृष्टि....यह मेरी बात है ।

लिखना बहुत जरूरी है , लिखना बन्द तो पढ़ना बन्द , लिखना बन्द तो सोचना बंद ,लिखना बन्द तो खुद का मूल्यांकन बन्द । लिखेंगे तो ही तो  पढ़ेंगे..कभी अपना ही , तो कभी किसी औऱ का ....पढ़ेंगे तो ही तो सुधरेंगे । सुधरेंगे नहीं तो बढ़ेंगे कैसे ?

तो इसी लिये लिखना जरूरी है ,खुद को अभिव्यक्त करना जरूरी है....फेसबुक की तात्कालिक जिंदगी में बहस है, उलझन है कभी कभी स्वागत- तिरस्कार है , शायद ब्लॉग की जिंदगी लम्बी है - गम्भीर है , समझदार है ....ना हो , तो भी कभी हो जाएगी । पर जो लिखा जायेगा वह सदैव सामने होता है ...हमेशा हमेशा ।

तो बस अभी यहीं डेरा है ...यही लिखेंगे....खुद को सुधारेगें....खुद को अभिव्यक्त करेंगे....फेसबुक पर केवल घूमनें चलेंगे ....रोज रोज ।