शूद्रो ब्राह्मणात् एति,ब्राह्मणश्चैति शूद्रताम्|
क्षत्रियात् जातमेवं तु विद्याद् वैश्यात्तथैव च||
(मनुस्मृति १०:६५)
जो शुद्र कुल में जन्म ले कर ब्राह्मण ,क्षत्रिए ओर वैश्यो के समान गुण कर्म स्वभाव वाला हो तो वह अपने गुण के आधार पर ब्राह्मण, क्षत्रिए ओर वैश्य बन जाये । ओर वेसे ही जो ब्राह्मण क्षत्रिए ओर वैश्यो कुल में उत्पन्न हुआ हो लेकिन उसके गुण ,कर्म , स्वभाव शुद्र के समान हो तो वह शुद्र बन जाए ।अर्थात चारो वर्णों में जो पुरुष स्त्री के गुण जिस वर्ग के समान हो वे उसी वर्ग में समझे जाए ।
अर्थात जाती जन्म से नही कर्म से बनती थी ओर कर्म से परिवर्तित होती थी । परिणाम स्वरुप एक ही गोत्र विभिन्न जातियों में मिल जाते हे ।
पर समय बदल गया... वर्ण जाती बन गये , जाती जड़ हो गई.... अब तो जाती मतलब जो जाती नहीं
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