Monday, February 2, 2015

जाती परिवर्तन ।




शूद्रो ब्राह्मणात् एति,ब्राह्मणश्चैति शूद्रताम्|
क्षत्रियात् जातमेवं तु विद्याद् वैश्यात्तथैव च||
(मनुस्मृति १०:६५)

जो शुद्र कुल में जन्म ले कर ब्राह्मण  ,क्षत्रिए ओर वैश्यो  के समान गुण कर्म स्वभाव वाला हो तो वह  अपने गुण के आधार पर  ब्राह्मण, क्षत्रिए ओर वैश्य बन जाये । ओर वेसे ही जो ब्राह्मण क्षत्रिए ओर वैश्यो कुल में उत्पन्न हुआ हो लेकिन उसके गुण ,कर्म , स्वभाव शुद्र के समान हो तो वह शुद्र बन जाए ।अर्थात चारो वर्णों में जो पुरुष स्त्री के गुण जिस वर्ग के समान हो वे उसी वर्ग में समझे जाए ।

अर्थात जाती जन्म से नही कर्म से बनती थी ओर कर्म से परिवर्तित होती थी ।  परिणाम स्वरुप एक ही गोत्र  विभिन्न जातियों में मिल जाते हे ।

पर समय बदल गया... वर्ण जाती बन गये , जाती जड़ हो गई.... अब तो जाती मतलब जो जाती नहीं 

Sunday, February 1, 2015

धर्म परिवर्तन... जिम्मेदार कोन ।


ईसाई मिशनरियो की गतिविधि किस तरफ ओर किस तरह बढती हे , यह पता था । आदिवासी व् दूरदराज के ईलाके इन के आसन निशाने थे पर कुछ समय से राजगढ़ में भी इन्हें सक्रिय होता देख रहा था । ngo के चहरे के नीचे एक बड़ा  संगठन यहाँ सक्रिय हो गया हे , जिस का चिन्ह भी धार्मिक चिन्ह हे ।आज झटका लगा जब एक अस्पस्ट जानकारी मिली की एक परिवार ने अपनी उपासना पद्धति परिवर्तित करी हे । अगले रविवार को इस परिवार से मिलना तय हुआ हे।
    पर मुद्दा इस से कुछ अलग हे । इन ईसाई मिशनरियो या इस तरह के NGO को जो विदेशी मदद मिल रही हे उस का समाधान क्या हे । क्या समाज इन  घटनाओ पर सक्रिय होगा । मेरा मत स्पस्ट हे , आप अपने विचारो से किसी भी उपासना पद्धति को अपना सकते हे । पर विचारो को बनाने या बिगाड़ने का काम प्रलोभन या सेवा की आड़ में किसी को नहीं करना चाहिए ।
       मेरी दिक्कत ये मिशनरियां नही बल्कि भारतीय वर्ग की अपने लोगो के प्रति उदासीनता हे । बड़े बड़े भंडारे या धार्मिक आयोजन की जगह यदि वंचित वर्ग पर यह धन खर्च हो तो , न केवल व्यापक समाज आगे बढ़ेगा बल्कि इस तरह की समाज  घाटी घटनाओ में भी रोक लगेगी । पर अफ़सोस हे की समाज के पास बाबाओ के आयोजन के लिए धन उपलब्ध हे पर इस दरिद्र नारायण के लिए तंग हाथ । हम यदि जिम्मेदारियों के प्रति नही चेते तो समस्या के आगमन पर उस के प्रभाव के किये  तॆयार रहना  चाहिए ।
     आज भी यह घटना संघ स्वयं सेवक के रूप में सामने लाई गई ओर  संघ को ही समाज के लिये चिंतित व स्कछम समझा जाता हे इस पर हर्ष  मिश्रित प्रश्न था की किस रूप में हम काम कर सकते हे । सक्रिय वनवासी कल्याण परिषद , विद्या भारती , के माध्यम से या किसी ओर रूप से ।