Tuesday, July 7, 2009

हिंदी नै पूछा , अनाथ क्युं हूँ मै

अभी कल एक पुस्तक की दुकान मे कुछ लेने गया तो लगा की हिंदी पुस्तकों की दुकान मे हिंदी पुस्तकों के बीच मे रखी अंग्रजी की कुछ पुस्तके बड़ी इठला रही है , जैसे देशी लोगो के बीच मे कोई सूट-बूट पहने कोई परदेशी बैठा हो , दुकान मे सबसे बढ़िया जगह भी इन्ही को मिली हुई थी , खैर जो लेना था वो लेकर मे तो बाहर आ गया पर लगा की कोई मेरा पीछा कर रहा है , रुका और देखा तो एक परछाई सी नजर आई , नजदीक आने पर एक साडी पहने एक नारी नजर आई , चहरा बड़ा तेजपूर्ण था , किसी सभ्रांत घर की सदस्य दिख रही थी पर कपड़ो और दशा से एक पीड़ित नारी लग रही थी

मैं कुछ पूछता , उस से पहले उसने कहा की "मेरे कई संताने हैं , कोई डॉक्टर , कोई वेज्ञानिक , जज , मंत्री , नेता , उद्योगपति , कर्नल मेजर , लक्ष्मी पुत्र तो कोई सरस्वती पुत्र तो कोई धरती पुत्र , कोई कलाकार तो कुछ समाजसेवी भी मेरे कुनबे मे है जो हर विषय पर झंडा बुलंद रखते है " ,
इतना सुनने पर सीधा सा मेरा प्रशन था " फिर आप का ये हाल , क्या हुआ क्या घर का रास्ता भूल गई है क्या या कोई ओर समस्या है "

उत्तर देने से पहले वो हंसी के साथ रोने लगी . मेरे पूंछने पर अपने आंसू थाम कर उसने कहा " हंसी , मेरे गर्व की प्रतीक है मेरा परिवार इतना बड़ा और खुशहाल है की हर माँ को गर्व होगा , इतने बेटो बैटियों के साथ मेरी कई बहने भी मेरे साथ एक ही घर मे रहती है , मेरे और मेरी बहनों के लायक संतानों नै हमे इतना कुछ दिया भी है की उस पर हम को नाज है , हर रिश्ते को नाम और इज्जत हम नै दी है "

फिर रोई क्युं आप ..एक गहरी साँस लेने के बाद बोली " इतना होने पर भी आज मे अनाथ हूँ ,अपने ही घर मे एक शरणार्थी की तरह जिंदगी निकाल रही हूँ , घोषित प्रमुख आज भी अपने कुनबे की मे ही हूँ पर स्थिति एक किरायदार की हो गई है " इतना बोल वो चुप हो गयी , मामले को गंभीर जान मुझे भी अब वहा रुकने को मजबूर होना पड़ा . अंदर का समाजसेवी जगने लगा मैं कुछ पूछता उस से पहले उस नै खुद ही कहा

" मै हिंदी हूँ ... इस देश की राज भाषा "

गली के सन्नाटे मे भी लगा की कोई करफू लग गया , क्या करू - क्या कहूँ ,समझ से परे था , वो भी जानती थी की मै यदि कुछ बोला तो झूटी तसल्ली ही दूंगा , इस लिये बिना मुझे मोका दिये बिना वो ही बोलने लगी " इस देश मे हजारो सालो से संस्कृत की कोख से सैंकडो भाषा निकली ओर इस देश मे बहने बन कर रही , कभी मेरी खास बहन उर्दू राजभाषा बनी , तो कही तमिल या ओर कोई पर कभी किसी को कोई समस्या नै थी , पर आज हमारी जो हालत है वो ..... .........?

" देश जब आजाद हो रहा था तो मुझ को लगा की अब अपने देश मे मे बिना किसी भेदभाव के पलूंगी , पर आजाद भारत मे प्रधानमंत्री नहरू जी नै अपने पहले एतिहासिक भाषण मे ही मेरी उपेछा कर अंग्रजी मे अपना भाषण दिया , तब ही आज़ादी के मेरी ख़ुशी पर एक प्रशन लग गया था , संविधान की भाषा मे नहीं थी , नोकरशाही तो अब भी अंग्रजी को ही गले लगाय हुई थी , लोकतंत्र आया तो मेरे नेता पुत्रो नै हम बहनो को ही अपनी सीढी बना ली , सैंकडो सालो से तमिल के साथ मे देश मे रह रही थी , आज मुझ को इस पर ही खतरा बता दिया , पराई भाषा स्वीकार थी पर हिंदी नहीं "
गहरी साँस से हिंदी फिर बोली " मुझे या मेरी अन्य बहनों को अंग्रजी से कोई समस्या नहीं है , पर क्या मुझे मेरे अपने घर मे मेरा स्थान नहीं मिलना चाहिये" मैने समझाने का प्रयास करते हुई कहा की -. देश के नेता ओर नोकरशाही कहती है इतना बड़ा देश - इतनी सारी भाषाओ मे मैं काम नहीं कर सकती - सेतुबंध नहीं हो सकती इन सब के लिये अंग्रजी चाहिये . इतना सुन गुससे मे तेज आवाज़ मे वो बोली " समझ नहीं आती मुझे ये बात , आज़ादी से पहले या अंग्रजी के देश मे आने से पहले क्या इस देश मे काम नहीं होता था , या देश मे उत्तर का बन्दा क्या द्क्चिन मे नहीं जाता था या देश मे व्यवसाय या समर्धि नहीं थी , शायद इतनी थी की देश को लूटने लूटेरे आ गये , फिर आज देश मे काम देश की भाषा मे कुन नहीं . पचास साल मे अंग्रजी को गले लगा ओर हम को छोड़ कर कितना विकास कर लिया '"

उस की सुन कर मै बोला की चिकित्सा , विज्ञानं जैसे विषय केवल अंग्रजी मे हो सकते है , विश्व व्यवस्था मे अंग्रजी के आलावा किसी ओर भाषा मे काम नहीं हो सकता हम तुम से चिपक कर ओर अंग्रजी को छोड़ कर अपना विकास नहीं रोक सकते है , तुरंत उस का जो जबाब आया जिस का उत्तर मेरे पास नहीं था , वो बोली .. " अच्छी बात है पर रूस , चीन , फ्रांस , जापान जैसे देशो मे क्या इन विषयों पर पढाई नहीं होती है या ये देश विश्व व्यवस्था मे कोई जगह नहीं रखते है "

" आज भी इस देश मै पैसा हमारे माध्यम से कमाया जाता है , पर हमे हमारा स्थान नहीं मिलता , हिंदी फिल्म उद्दोग कमाता हिंदी से है पर बोलता अंग्रजी मै है , जज निर्णय भारतीयों के लिये करता है पर भाषा अंग्रजी है , उद्दोग हमारे लोगो के बीच चलता है पर काम अंग्रजी मै होता है , नेता वोट भारतीय भाषा मे मांगता है पर मंत्री और सरकार केवल अंग्रजी मै बोलती है , विज्ञापन मै अंग्रजी , रोजगार मै अंग्रजी ,हर सरकारी दफ्तर - कागज पर लिखा होता है की हिंदी मै काम करने पर स्वागत है पर हिंदी भाषी को हिराकत से देखा जाता है ,"

हिंदी की सुन कर मै चुप था , आगे उस नै जो कहा उस को सुन कर शायद आप भी . हिंदी बोली " ओर भी बहुत कुछ कह सकती हूँ पर अपने बच्चो की ज्यादा क्या शिकायत करू , शायद किस्मत मेरी ही ख़राब है , अंग्रजी विश्व मै इस लिये फैली की उस के बच्चो नै उस के लिये काम किया , जहा वो गये अंग्रजी को फैलाते गये ,रूस -चीन -फ्रांस -जापान की भाषा आज भी अपने देश की राज ओर जन भाषा है , इन देशो का वासी न केवल अपने राष्ट्रीय स्वाभिमान के लिये जागरूक है बल्कि अपनी हर चीज पर गोरव भी करते है ,, पर हमारे यहाँ सब कुछ उल्टा है बात राष्ट्रीय स्वाभिमान की करेगे पर ,काम दूसरा करेंगे .. गौरव के नाम पर भाषण भी देंगे तो दूसरी जबान मै ....... क्या देश आजाद हो गया है सोचो जरुर ओर एक बात जो देश ओर देशवाशी अपनी भाषा अपनी जबान पर गौरव नहीं कर सकते है , काम नहीं कर सकते है वो देश कभी अपनी जड़ो से जुडा नहीं रह पायेगा ओर न अपना स्थान बना पायेगा , देश मै हमेशा 2 वेर्ग रहेगे एक अंग्रजी बोलने वाला ओर दूसरा न बोलने वाला ओर यही वेर्ग देश मै आर्थिक भेद के वेर्ग बनेगे , और शायद बन भी चुके है , शायद अभी मेरे देशवासियों मे से गुलामी गई नहीं है इसलिये ही अपने घर मे मे अनाथ हूँ - "

उस के आखरी शब्दों से मुझे देश की हालत का चित्र नजर आ गया , बढ़ता आर्थिक भेद नजर आने लगा , आँखों के सामने और अंधेरा नजर आया , जब तक संभालता खुद को तब मुझ को तो सावधान कर वो नारी तो कही अंधरे मे गुम हो गई , पर उसके प्रश्न उत्तेर की प्रतीछा मै है ,यदि आप के पास है तो बताये ताकि अगले बार जब वो मिले तो मैं उस को बता सकु

7 comments:

GKK said...

हिंदी के भविष्य को लेकर मै भी बहुत चिंतित हु आज शहर में कही पर भी किसी भी शौपिंग काम्प्लेक्स में पहुचो वह पर अधिकतर विवाहित जोड़े अपने छोटे छोटे बच्चो से अंग्रेजी में ही बात करते नजर आयेंगे. लेकिन उनमे उनकी गलती भी क्या है, आज मुझे अफ़सोस है की क्यों मै अंग्रेजी माध्यम में नहीं पढ़ा. अंग्रेजी में १२ वी कक्षा पास की होती तो जहा तक पहुचने की काबिलियत है वह तक पहुच पाते और लोगो से इतने पीछे नहीं रहते है लेकिन मै दुखी नहीं हू इस बार से पूर्णतया. हर कोई माता पिता अपने बच्चो को आगे देखना चाहते है एवं मुझे विश्वास है की हम भी अपने बच्चो को अंग्रेजी माध्यम में ही प्रवेश दिलवाएंगे. हम यह कर सकते है की अपने रोजाना के प्रयोग में हिंदी का ही इस्तेमाल करे| अंग्रेजी इतनी व्यापक होने के २ महत्त्वपूर्ण कारन जो मुझे लगते है , १) अंग्रेजो का शासन २) हर प्रदेश की अलग भाषा. मै भारत के बहुत से प्रान्तों में घूमा हुआ हू, शायद इसमें अंग्रेजी का योगदान है की आज हम भाषा के उपर नहीं लड़ रहे हो सकता है की आज हम भी गृह युद्घ से जूझे हुए होते . जहा तक मेरा दक्षिण भारत का अनुभव है यहाँ पर लोगो को अंग्रेजी का अच्छा ज्ञान है लेकिन यहाँ पर बहुतायत से लोग अपनी भाषा बोलते है जो की उत्तर भारत में नहीं है | अंग्रेजी नहीं आने से लोगो को IAS, Defence Services & other major govt post तक पहुचने से वंचित रहना पड़ता है.
मै इस बात से पूरी तरह सहमत हू की अंग्रेजी से लोगो में आर्थिक भेदभाव बढ़ रहा है. जो आजकल प्राइवेट विद्यालयों में जो महँगी पढाई होती जा रही है उसे रोकना पड़ेगा या फिर सरकारी विद्यालयों का इस्टर बढ़ाना पड़ेगा ताकि गरीब तबके के लोग भी अंग्रेजी का फायदा उठा सके. एक बार और आज जो हमारी आईटी में तरक्की है वो अंग्रेजी के कारन ही है.

प्रशांत गुप्ता said...

गौरव ,

मेरा विषय कुछ अलग है जो की अंग्रजी के प्रभुत्व के प्रशन से जुडा है , भाषा मुख्तया दो जगह असर कारक है एक रोजगार और दूसरा राष्ट्रीय स्वाभिमान . आप ने "जहा तक पहुचने की काबिलियत है वह तक पहुच पाते" "अंग्रेजी नहीं आने से लोगो को IAS, Defence Services & other major govt post तक पहुचने से वंचित ".इस से मे सहमत हूँ और यही मेरी नाराजगी का कारन है , शायद विश्व मे हमारा ही देश एक एसा देश है जहा तरक्की और रोजगार एक विदेशी भाषा से जुडा है , आज देश मे योग्यता का एक मात्र मापदंड केवल अंग्रजी का ज्ञान है

"भारत के बहुत से प्रान्तों में घूमा हुआ हू, शायद इसमें अंग्रेजी का योगदान है की आज हम भाषा के उपर नहीं लड़ रहे हो सकता है की आज हम भी गृह युद्घ से जूझे हुए होते " दोस्त आप का ये कथन जाने अनजाने सम्पूर्ण भारतीयता पर ही प्रशन लगा रहा है , जो बहुत कुछ उन लोगो के सिधांत से भी मिलता है जो एस देश की राजनैतिक एकता के लिये अंग्रेजो को धन्यवाद देते है. यदि देश मे सत्तानैता न होते तो एस देश को हिंदी से भी बंधा जा सकता था , अंग्रजी से पहले भी ये देश एक था

"हमारी आईटी में तरक्की है वो अंग्रेजी के कारन ही है." फिर चीन , रूस , जापान , फ्रांस की तरक्की मे आप किस का योगदान मानेगे

आज जहा देश मे जापानी निवेश हो रहा है , वहां जापानी भाषा मे बोर्ड लगे जा रहे है , अपने देश और अपनी सम्पदा पर भरोसा ओरो को भी उस का सम्मान करना सिखा देता है , जो हम भारतीयों को भी सीखना है

shama said...

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प्रशांत गुप्ता said...
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Akshitaa (Pakhi) said...

Hindi to sabse pyari bhasha hai.

Pankaj Gupta said...

Prashant ji kya aapne hindi upeksha nahi ki,
apna parichya dekhiye
aap chahte to jo word aapne angreji me likhe hai wo aap hindi me bhi likh sakte the,

jaise India : Bharat
Investment Banking : Beema
Occupation: naukri

Dhanyawaad

प्रशांत गुप्ता said...

@ Pankaj
सुझाव के लिये धन्यवाद , मै यहाँ कोशिश कर चुकां हूँ पर इन शब्दों को हिंदी मे तब्दील नहीं कर पाया , आप कि सहायता प्रार्थनीय है