Thursday, July 30, 2009

अब कहाँ है "इस" अभिव्यक्ति कि स्वतंत्रता के पैरोकार

सविधान मे बड़ा प्यारा सा नाम है अभिव्यक्ति कि स्वतंत्रता , जिसे जो मन मे आये वही व्याख्या कर ले , कभी हुसैन साहब हिन्दू आराध्य देवियों के नग्न चित्र बनाये या गुजरात मे कोई छात्र कला के नाम पर हिन्दू आराध्यों के अश्लील चित्र बनाये तो इन्हे अभिवक्ति कि स्वतंत्रता , कला के विकास का प्रवर्तक बताया जाता है . इनका विरोध करने वालो को साम्प्रदयिक बता इन " महान " कलाकारों के समर्थन मे देश के बहुत से तथाकथित कलाकार बडे झंडे उठा लेते है , पर अभी जब एक पुस्तक मे मोहमद साहब का एक काल्पनिक चित्र प्रकाशित होने पर प्रकाशक को गिरफ्तार किया गया ( लिंक देखे) तो ये कला समर्थक ओर धर्मनिर्पेछ्ता के पैरोकार पता नहीं कहा गायब है , अब क्यूँ इन कि अभिव्यक्ति कि स्वतंत्रता गायब है , हर धर्म कि अपनी मान्यतायी है ओर उनका सम्मान भी होना चाहिये पर एक ही चीज पर ये विरोधाभास क्यूँ , क्या ये लाठी का जोर है ???????
http://www.rajasthanpatrika.com/national/detail/?nid=4932

Monday, July 20, 2009

जगह ढूंढती संवेदनाये

कल घर से ट्रेन मे वापस आ रहा था , हजारो करोड़ के मुनाफे वाली ट्रेन मे यात्रियों का हाल देख मुनाफे पर शक होता है , जनरल बोगी की तो बात छोडिये रिजेर्वेशन बोगियों मे भी जगह तलाशना मुशिकल है , खैर जुगाड़ लगा ही लेते है तो ऊपर की बर्थ पर सामान इधर उधर कर अपनी तो व्यवस्था हो गई, अपनी आदत के चलते जगह मिलते ही एक किताब निकाल कर उस मे लग गया , खैर जी छोडिये मुद्दे पर आते है .

कहते के कि महिलाओ को महिलाओ कि बड़ी चिंता होती है ( आज तक मे इस को समझ नहीं पाया हूँ ) , एक दूसरे के लिये बड़ी संवदेनशील होती है , पर कल इस सफ़र मे जो देखा को समझ नहीं आया . भीड़ के चलते मैं तो ऊपर चढ़ गया था पर नीचे कुछ हल्ला देख नीचे ध्यान गया , नीचे कि बर्थ पर कुछ महिलाओ का ही रिजेर्वेशन था , एक बर्थ पर दो दो जेंटल लेडी ही बैठी हुई थी , महिलाये थी इसीलिये कोई भी वहां जगह नहीं मांग रहा था , पर एक महिला यात्री जिस कि गोद मे एक बच्चा भी था , उस भीड़ मे उन महिलाओं से वहां जगह मांग बैंठी , उस कि उम्मीद गलत भी नहीं थी वो बार बार कह रही थी कि उस को अगले स्टेशन पर उतरना है , पर ताज्जुब हुआ उन पड़ी लिखी महिलाओं कि संवेदनाओ वो देख कर , साफ साफ शब्दों मे उस महिला को जगह देने से मना कर दिया , आमने सामने कि तीन बर्थ पर 6 महिला ओर एक बच्चे को गोद मे लिये हुई एक महिला ,पर शर्म उस को बैठने कि जगह नही मिली कारण , वो महिलाये आराम करना चाहती थी शाम के सात बजे .वहां खडे कितने ही लोगों ने उन से उस महिला को जगह देने का आग्रह किया पर सब व्यर्थ था , उस महिला ने भीड़ मे ही आगे निकाल कर जगह तलाश करना उचित समझा , आगे उसे तुरंत जगह भी मिल गई .

इतना होने के बाद मेरा ध्यान भी नीचे ही लग गया , देखा कि कुछ महिला समितियों के लैटर हैड नजर आये , बातों पर ध्यान दिया तो सुना कि ये सभ्रांत महिलाये महिला समितियों से जुडी थी ओर दिल्ली मे किसी महिला सम्मेलन मे हिस्सा लेने जा रही थी . अब आगे क्या कहै , देश मे समलैंगिको के लिये संवेदनाये स्थापित कि जा रही है पर शायद मानवीय संवेदनाये खुद अपनी जगह तलाश रही है

Thursday, July 16, 2009

दीपावली मनाओ , वो केवल भारत आ रही है ..

"भारत सरकार बहुत खुश है , अपनी विदेश नीति की सफलता पर आनंदित है आखिर अमरीका की विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन केवल भारत आ रही है पाकिस्तान नहीं जा रही है . अमरीका अब भारत को पाकिस्तान से ज्यादा महत्व दे रहा है "

जब भारत सरकार के प्रवक्ता की टिपण्णी पड़ी ओर मीडिया मे इस की कवरेज देखि , तो सोचा की कही हम अमरीका के उपनिवेश तो नहीं है ,, जहाँ महामहीम आ रहे हों ,वो पाकिस्तान नहीं जा रही तो भी ये भारत सरकार को अपनी सफलता दिख रही है , क्या पता इसी ख़ुशी मे भारत सरकार दिवाली मनाने का हुक्म जारी कर दे , पर जब अमरीका के राष्ट्रपति भारत आयेगे तब सरकार ओर मीडिया क्या दंडवत प्रणाम करेगी

.या विदेश मंत्रालय के नोकरशाह बच्चो का खेल तो नहीं खेल रहे है ,जहाँ एक बच्चा दूसरे से बोले की देख देख पड़ोस वाली आंटी ने मुझे प्यार किया तुझे नहीं ......

Tuesday, July 7, 2009

हिंदी नै पूछा , अनाथ क्युं हूँ मै

अभी कल एक पुस्तक की दुकान मे कुछ लेने गया तो लगा की हिंदी पुस्तकों की दुकान मे हिंदी पुस्तकों के बीच मे रखी अंग्रजी की कुछ पुस्तके बड़ी इठला रही है , जैसे देशी लोगो के बीच मे कोई सूट-बूट पहने कोई परदेशी बैठा हो , दुकान मे सबसे बढ़िया जगह भी इन्ही को मिली हुई थी , खैर जो लेना था वो लेकर मे तो बाहर आ गया पर लगा की कोई मेरा पीछा कर रहा है , रुका और देखा तो एक परछाई सी नजर आई , नजदीक आने पर एक साडी पहने एक नारी नजर आई , चहरा बड़ा तेजपूर्ण था , किसी सभ्रांत घर की सदस्य दिख रही थी पर कपड़ो और दशा से एक पीड़ित नारी लग रही थी

मैं कुछ पूछता , उस से पहले उसने कहा की "मेरे कई संताने हैं , कोई डॉक्टर , कोई वेज्ञानिक , जज , मंत्री , नेता , उद्योगपति , कर्नल मेजर , लक्ष्मी पुत्र तो कोई सरस्वती पुत्र तो कोई धरती पुत्र , कोई कलाकार तो कुछ समाजसेवी भी मेरे कुनबे मे है जो हर विषय पर झंडा बुलंद रखते है " ,
इतना सुनने पर सीधा सा मेरा प्रशन था " फिर आप का ये हाल , क्या हुआ क्या घर का रास्ता भूल गई है क्या या कोई ओर समस्या है "

उत्तर देने से पहले वो हंसी के साथ रोने लगी . मेरे पूंछने पर अपने आंसू थाम कर उसने कहा " हंसी , मेरे गर्व की प्रतीक है मेरा परिवार इतना बड़ा और खुशहाल है की हर माँ को गर्व होगा , इतने बेटो बैटियों के साथ मेरी कई बहने भी मेरे साथ एक ही घर मे रहती है , मेरे और मेरी बहनों के लायक संतानों नै हमे इतना कुछ दिया भी है की उस पर हम को नाज है , हर रिश्ते को नाम और इज्जत हम नै दी है "

फिर रोई क्युं आप ..एक गहरी साँस लेने के बाद बोली " इतना होने पर भी आज मे अनाथ हूँ ,अपने ही घर मे एक शरणार्थी की तरह जिंदगी निकाल रही हूँ , घोषित प्रमुख आज भी अपने कुनबे की मे ही हूँ पर स्थिति एक किरायदार की हो गई है " इतना बोल वो चुप हो गयी , मामले को गंभीर जान मुझे भी अब वहा रुकने को मजबूर होना पड़ा . अंदर का समाजसेवी जगने लगा मैं कुछ पूछता उस से पहले उस नै खुद ही कहा

" मै हिंदी हूँ ... इस देश की राज भाषा "

गली के सन्नाटे मे भी लगा की कोई करफू लग गया , क्या करू - क्या कहूँ ,समझ से परे था , वो भी जानती थी की मै यदि कुछ बोला तो झूटी तसल्ली ही दूंगा , इस लिये बिना मुझे मोका दिये बिना वो ही बोलने लगी " इस देश मे हजारो सालो से संस्कृत की कोख से सैंकडो भाषा निकली ओर इस देश मे बहने बन कर रही , कभी मेरी खास बहन उर्दू राजभाषा बनी , तो कही तमिल या ओर कोई पर कभी किसी को कोई समस्या नै थी , पर आज हमारी जो हालत है वो ..... .........?

" देश जब आजाद हो रहा था तो मुझ को लगा की अब अपने देश मे मे बिना किसी भेदभाव के पलूंगी , पर आजाद भारत मे प्रधानमंत्री नहरू जी नै अपने पहले एतिहासिक भाषण मे ही मेरी उपेछा कर अंग्रजी मे अपना भाषण दिया , तब ही आज़ादी के मेरी ख़ुशी पर एक प्रशन लग गया था , संविधान की भाषा मे नहीं थी , नोकरशाही तो अब भी अंग्रजी को ही गले लगाय हुई थी , लोकतंत्र आया तो मेरे नेता पुत्रो नै हम बहनो को ही अपनी सीढी बना ली , सैंकडो सालो से तमिल के साथ मे देश मे रह रही थी , आज मुझ को इस पर ही खतरा बता दिया , पराई भाषा स्वीकार थी पर हिंदी नहीं "
गहरी साँस से हिंदी फिर बोली " मुझे या मेरी अन्य बहनों को अंग्रजी से कोई समस्या नहीं है , पर क्या मुझे मेरे अपने घर मे मेरा स्थान नहीं मिलना चाहिये" मैने समझाने का प्रयास करते हुई कहा की -. देश के नेता ओर नोकरशाही कहती है इतना बड़ा देश - इतनी सारी भाषाओ मे मैं काम नहीं कर सकती - सेतुबंध नहीं हो सकती इन सब के लिये अंग्रजी चाहिये . इतना सुन गुससे मे तेज आवाज़ मे वो बोली " समझ नहीं आती मुझे ये बात , आज़ादी से पहले या अंग्रजी के देश मे आने से पहले क्या इस देश मे काम नहीं होता था , या देश मे उत्तर का बन्दा क्या द्क्चिन मे नहीं जाता था या देश मे व्यवसाय या समर्धि नहीं थी , शायद इतनी थी की देश को लूटने लूटेरे आ गये , फिर आज देश मे काम देश की भाषा मे कुन नहीं . पचास साल मे अंग्रजी को गले लगा ओर हम को छोड़ कर कितना विकास कर लिया '"

उस की सुन कर मै बोला की चिकित्सा , विज्ञानं जैसे विषय केवल अंग्रजी मे हो सकते है , विश्व व्यवस्था मे अंग्रजी के आलावा किसी ओर भाषा मे काम नहीं हो सकता हम तुम से चिपक कर ओर अंग्रजी को छोड़ कर अपना विकास नहीं रोक सकते है , तुरंत उस का जो जबाब आया जिस का उत्तर मेरे पास नहीं था , वो बोली .. " अच्छी बात है पर रूस , चीन , फ्रांस , जापान जैसे देशो मे क्या इन विषयों पर पढाई नहीं होती है या ये देश विश्व व्यवस्था मे कोई जगह नहीं रखते है "

" आज भी इस देश मै पैसा हमारे माध्यम से कमाया जाता है , पर हमे हमारा स्थान नहीं मिलता , हिंदी फिल्म उद्दोग कमाता हिंदी से है पर बोलता अंग्रजी मै है , जज निर्णय भारतीयों के लिये करता है पर भाषा अंग्रजी है , उद्दोग हमारे लोगो के बीच चलता है पर काम अंग्रजी मै होता है , नेता वोट भारतीय भाषा मे मांगता है पर मंत्री और सरकार केवल अंग्रजी मै बोलती है , विज्ञापन मै अंग्रजी , रोजगार मै अंग्रजी ,हर सरकारी दफ्तर - कागज पर लिखा होता है की हिंदी मै काम करने पर स्वागत है पर हिंदी भाषी को हिराकत से देखा जाता है ,"

हिंदी की सुन कर मै चुप था , आगे उस नै जो कहा उस को सुन कर शायद आप भी . हिंदी बोली " ओर भी बहुत कुछ कह सकती हूँ पर अपने बच्चो की ज्यादा क्या शिकायत करू , शायद किस्मत मेरी ही ख़राब है , अंग्रजी विश्व मै इस लिये फैली की उस के बच्चो नै उस के लिये काम किया , जहा वो गये अंग्रजी को फैलाते गये ,रूस -चीन -फ्रांस -जापान की भाषा आज भी अपने देश की राज ओर जन भाषा है , इन देशो का वासी न केवल अपने राष्ट्रीय स्वाभिमान के लिये जागरूक है बल्कि अपनी हर चीज पर गोरव भी करते है ,, पर हमारे यहाँ सब कुछ उल्टा है बात राष्ट्रीय स्वाभिमान की करेगे पर ,काम दूसरा करेंगे .. गौरव के नाम पर भाषण भी देंगे तो दूसरी जबान मै ....... क्या देश आजाद हो गया है सोचो जरुर ओर एक बात जो देश ओर देशवाशी अपनी भाषा अपनी जबान पर गौरव नहीं कर सकते है , काम नहीं कर सकते है वो देश कभी अपनी जड़ो से जुडा नहीं रह पायेगा ओर न अपना स्थान बना पायेगा , देश मै हमेशा 2 वेर्ग रहेगे एक अंग्रजी बोलने वाला ओर दूसरा न बोलने वाला ओर यही वेर्ग देश मै आर्थिक भेद के वेर्ग बनेगे , और शायद बन भी चुके है , शायद अभी मेरे देशवासियों मे से गुलामी गई नहीं है इसलिये ही अपने घर मे मे अनाथ हूँ - "

उस के आखरी शब्दों से मुझे देश की हालत का चित्र नजर आ गया , बढ़ता आर्थिक भेद नजर आने लगा , आँखों के सामने और अंधेरा नजर आया , जब तक संभालता खुद को तब मुझ को तो सावधान कर वो नारी तो कही अंधरे मे गुम हो गई , पर उसके प्रश्न उत्तेर की प्रतीछा मै है ,यदि आप के पास है तो बताये ताकि अगले बार जब वो मिले तो मैं उस को बता सकु