Sunday, May 31, 2009

प्रधानमंत्री जी , क्या आप को नींद आ रही है ?

"खुला पत्र प्रधानमंत्री के नाम"

माननीय प्रधानमंत्री जी ,
मै जानता ही प्रधानमंत्री जी , आप बडे संवदनशील है , कई बातो पर आप को नींद नहीं आती है , अच्छी बात है कि आप इस बात को देश कि जनता से बाँट भी लेते है . पर पता नहीं चल पा रहा ही ऑस्ट्रेलिया मे भारतीय छात्रों पर लगातार हो रहे हमलो के बाद आप को नींद आ रही है या नहीं .? समझ सकता हूँ कि चुनाव कि थकान और अपने मंत्रिमंडल के गठन कि सिरदर्दी से आप अभी अभी उबरे है , नींद कि आप को जरूरत है , पर क्या करू ऑस्ट्रेलिया मे अपने भाइयो पर हो रहे हमलो से मै बड़ा उदास और चिंतित ही इसी लिये जानना चाहता हु कि क्या हजारो मील से आ रही ये आवाज़ आप कि नींद उड़ा पाई है या नहीं .

हर साल ऑस्ट्रेलिया जितनी जनसँख्या जिस देश मै पैदा होती है , वही देश आज अपने छात्रों को सुरक्षा नहीं दे पा रहा है , बार बार वहा से बयान आ रहे है कि सरकार से हमे कोई मदद नहीं मिल रही है पर कुछ बयानों के अलावा किसी मदद का कोई अहसास नहीं है ,कहाँ है हिंदुस्तान के नवनिर्वाचित युवा सांसद , मंत्री और युवा राजनीती के तथाकथित " नेता " राहुल गाँधी और इन कि सरकार , क्या हमारे छात्रों कि आवाज़ इन्हे सुनाई दे रही है .

प्रधानमंत्री जी , नींद से जागिये और इन छात्रों के बारे मे भी सोचिये , लंकाई तमिलों पर आई समस्या पर आप अपने विदेश मंत्री , विदेश सचिव और सुरक्षा सलाहकार को लंका भेज सकते है , यहाँ तो हमारे अपने युवाओ पर हमले हो रहे है , अब बयानों से आगे बढ़ कर अपने विदेश मंत्री को कडे संदेशो के साथ ऑस्ट्रेलिया जाने का आदेश दीजिये ताकि इन छात्रों और इस देश कि जनता के साथ इन पर हमला करने वालो को लगे ही इन का भी एक देश है और उस देश मे एक सरकार है जो इस देश के हर नागरिक के बारे मे सोचती है और उन कि सुरक्षा करने मे भी समर्थ है .

आपका ही

Monday, May 25, 2009

" दर्द ,प्राइवेट नोकरी का"



सरकारी कर्मचारियों को देखकर बहुत जलन होती है। जरूर पिछले जन्म में बहुत पुण्य किये होंगे, जो सरकारी नौकरी मिली। पॉँच साल के अपने अनुभव से मैं तो ये कह सकता हूं। हमने बहुत पाप किए होंगे। सुबह 9 बजे से लेकर शाम तक जो हाल होता है उसके बाद तो राम रखे। बुजुर्ग कहते हैं कि "भाई पैसे बहुत पर पूरा तेल निकाल लेते हैं प्राइवेट नौकरी में" कभी पूरी बात सही थी पर अब केवल पीछे की शब्द ही सही रह गये है। पैसा तो नये वेतन आयोग के बाद फिर भाग्यशाली लोग ले गए। उपर से मंदी की मार आ गई। सोचता हूं कम से कम इस जन्म में तो कुछ पुण्य कर लू, जिससे अगला जन्म तो सुधर जाए।

भाई किसी की तो ज्यादा नहीं कह सकता, पर अपनी तो "बजा" रखी है। प्रमोशन के लिये 100 नाटक और काम की कमी नहीं ,जो तेरा काम है वो तो तू कर ही और जो तेरा काम नहीं वो भी तू कर। क्‍यूंकि तू ऑफिस का "मालिक" है हर काम तेरा ही है। आदत शुरु से ही खराब रही है( एएचएस से ही बिगड़ गयी थी ) ना किसी को कर नहीं सकते, सोचते हैं कि चल कुछ सीखने को ही मिलेगा अब भाई जब आदत अपनी ही खराब तो उसको भुगतना तो पडेगा ही !!

जब सेल्‍स में था तब ऑफिस की और जिमेदारी ले रखी थी, अब कुछ ज्यादा ही ! अभी मेरा ऑफिस नई बिल्डिंग मे शिफ्ट हो रहा है। बिल्डिंग ढूँढने, रेट फिक्स करने , दुनिया भर की अप्रोवल, बहुत सारे लीगल, फाइनेंस, रि शिफ्टिंग डिपार्टमेंन्‍टस में बात करो। इनके कागज पूरे करना। उफ़ . ट्रांसपोर्ट, कारपेंटर, बिजलीवाला ढूँढना है और पुराने मालिक से बना कर रखो। उसका क्लेम कम से कम रखना है। ऑफिस बदलने पर सरकारी विभागों को सूचना, लोकल प्रचार भर जरूरी है। ऐसा नहीं है कि इसके लिये अलग बन्दा नहीं है, है एक वो भी 60-70 ऑफिस पर एक। तो भाई हम को ही करना है, और ये सब कुछ करने की आखरी तारिख एक जून। नहीं हुआ तो हमारे लिये "प्रेम पत्र " और इन सब के अलावा ऑफिस तो है ही, सेल्‍स के टारगेट भी पूरे करने हैं।


करना सुब कुछ है पर प्रमोशन , भाई विचार चल रहा है , हो जायेगा ,चिंता भी मत कर और छोड़कर भी मत जा। वैसे बताता चलूं कि पिछले साल हर चीज में हम अपने रीजन मे नंबर वन थे पर प्रमोशन के लिये तरस गये।


भाई बताओ ना की अगले जन्म के लिये कौनसा पुण्य करूं कि सरकारी नौकरी मिले।
कोई जुगाड आपको पता हो तो टिप्‍पणी अवश्‍य करें !!!

Thursday, May 21, 2009

चुनाव परिणाम - प्रश्न कारण, ख़ुशी और उम्मीद

एनडीए की हार और यूपीए की जीत ने मन को उदास भी किया है, बहुत कुछ सोचने को मजबूर किया। चुनाव परिणाम काफी ज्यादा आश्‍चर्यजनक रहे। न एनडीए को अपनी इतनी बुरी हार का अंदेशा था और न ही कांग्रेस को इतनी सफ़लता की उम्मीद। फिर ये हुआ क्या, क्या जनता के अंदर कोई चुपचाप लहर चल रही थी जिसे कांग्रेस, बीजेपी और एक मतदाता के रूप में आप और हम महसूस नहीं कर पाए। फिर ऐसा क्या हुआ की परिणाम ऐसा आया।

कुछ प्रश्‍न सामने आए हैं।
1. क्या जनता सोचती है - जो सोचते है वो वोट नहीं डालते और जो नहीं सोचते वो वोट डालते है।
2.क्या ये डेमोक्रेसी की जीत है - तब शायद 75 फीसदी वोटिंग होती न की 50 फीसदी से कम।
3.क्या ये युवा वर्ग की जीत है - लगभग 50 सांसद युवा माने जा रहे है, इनमे से कितने आप-हममें से है, वो युवा वर्ग के प्रतिनिधि माने जाएंगे या पारिवारिक राजनीति के वारिस, मुझको तो कई बार ये लगता है ये प्रक्रिया छोटे छोटे रियासतों के युवराजों का राज्याभिषेक है।
4.क्या ये मुद्दों की जीत है- तब शायद महंगाई, 60 सालों में देश में हुआ विकास, अल्‍पसंख्‍यक समुदाय का विकास ( वैसे मैं बहुसंख्‍यक और अल्‍पसंख्‍यक के सिद्धांत को ही देश हित मे नहीं मानता), कालाधन विदेशों से भारत मे वापिस लाना, तीन लाख तक इनकम टैक्स से मुक्ति, देश की सीमाओं की सुरक्षा आदि मुद्दे देश को प्रभावित कर पाए या नहीं आप देखें ।
5.क्या ये नेतृत्व आधारित जीत है – आडवाणीजी और श्रीमती सोनिया-राहुल गाँधी मे समानता कैसे की जा सकती है, एक तरफ है 60 साल का राजनीतिक सफर व दूसरी तरफ है पारिवारिक विरासत को भोगने वाला वंश, जिसने आज़ादी मे दिए अपने पूर्वजों के योगदान को खूब भुनाया है। यदि मनमोहन सिंह जी की बात करें (व्‍यक्‍ितगत रूप से मैं इन की ईमानदारी और काबलियत पर शक नहीं कर रहा हूं) तो गाँधी परिवार के एक सीईओ से ज्यादा क्या भूमिका मानूं।
6.क्या ये धर्म निरपेक्षता की साम्प्रदायिकता पर जीत है- हम किस को साम्प्रदायिक और धर्म निरपेक्ष प्रतिनिधि मानते है, आखिर क्‍यों हिन्दू हित की बात करना साम्प्रदायिक और मुस्लिम व ईसाई हित की बात करना धर्म निरपेक्ष माना जाता है।

फिर आखिर ये क्‍यों हुआ, मुझे जो लगता है -
1.वोटिंग प्रतिशत का ऐतिहासिक रूप से कम होना
2.मुस्लिम और ईसाई वोटिंग, पूरी तरह से कांग्रेस के पक्ष मे गई (यूपी, आंध्र, केरल ) सपा, बसपा और कामरेडों को भी छोड़ दिया गया।
3.बीजेपी के वोटर व कैडर वोट डालने-डलाने के लिए नहीं निकले।
4.बीजेपी अपने मुद्दे जनता तक नहीं ले जा सकी, अपने असली मुद्दों की जगह नकारात्मक प्रचार उन को ले डूबा।

फिर भी मैं कुछ खुश भी हूं क्‍योंकि-
1.कांग्रेस को 200+ सीटें आने से एक स्थाई सरकार की उम्मीद जगी है।
2.लालू , मुलायम, मायावती, कामरेड, जया के हॉफ और पासवान व चौटाला के साफ होने से दबाब की राजनीति कुछ कम होने की उम्मीद है।
3.बीजेपी को अपनी नीति, कार्यशैली और नए नेतृत्‍व पर विचार करना होगा ।
4.इन परिणामों से शायद, सोचने वाला वर्ग वोट डालने के बारे मे भी सोचेगा।

खैर पॉँच साल तक इस सरकार को ही देश को आगे बढाना है, कुछ उम्मीद है मुझे -
1.गाँधी परिवार के सीईओ डॉ.मनमोहन सिंह जी पॉँच साल तक प्रधानमन्त्री बने रहेंगे, युवराज राहुल बाबा बीच मे ही नहीं टपकेंगे।
2.आतंकवाद को हिन्दू या मुस्लिम मे नहीं बताया जाएगा. अफज़ल को सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर फाँसी की सजा मिलेगी ।
3.गैस के सिलेंडर बिना लाइन के मिलेंगे व घर का बजट महंगाई से नहीं बिगडेगा, शेयर मार्केट की "कालाबाजारी" बंद होगी।
4. हिन्दुतान की सम्पदा पर सभी भारतवासियों का हक माना जाएगा न की केवल मुस्लिम समुदाय का ( मनमोहन सिंह का पूर्व बयान याद रखें)।
5. बिना राज्य, धर्म और भाषा के भेदभाव के विकास का माहौल उपलब्ध किया जाएगा।
6. बीजेपी अपनी गलतियां सुधार लेगी
और
2014 का चुनाव देश के लिए देश के नाम पर लड़ा जाएगा।

Thursday, May 14, 2009

एक चुनाव देश के नाम पर ..................


क्या संभव है कि एक चुनाव केवल देश के नाम पर लड़ा जाये। परिवार, विरासत, जाति, साम्प्रदायिकता,भाषा , राज्य से हटकर हम देश की , देश के विकास की बात करें एक जाति और धर्म की नहीं भारतवासी की बात करें। आज किस पर भरोसा कर सकते हैं, कोई पारिवारिक विरासत के साथ चुनाव मे आता है तो कोई अपनी जाति और धर्म के बल पर। केवल आता ही नहीं है चुनाव जीतता भी है..........टीवी पर या सार्वजानिक सभा मे देश सेवा से चालू हो कर बिना रुकावट जाति धर्म के मुदे पर पहुचे बिना आज कोई चर्चा पूरी नहीं हो रही है। इस बार के चुनाव मे तो हर लक्ष्मण रेखा पार हुई है.... परिणाम वोटिंग प्रतिशत में ही साफ दिख रहा है। अभी तो मध्य है अंत बाकी है, कितनी बड़ी मंडी इस बार सजने वाली है या सज चुकी है। वो सेवा के नाम पर जीने मरने वाले इन राजनेताओ का चरित्र एक बार फिर सामने लायेगी।
बिलकुल मत मानना कि मैं निराश हूं ये देश मेरा है ....मैं निराश हो ही नहीं सकता हूं पर बात समाधान की करनी तो होगी। राजनीति का मतलब राज करने की नीति से है और राज कर्तव्य पालना से जुड़ा होता है..पर आज ये राजनीति केवल सत्तानीति मे तब्दील हो गई है ,जहाँ कर्तव्य नहीं अधिकार और ताकत प्रभावी है.यहाँ मैं इस परिस्थति के लिये राजनेताओ से ज्यादा, पढे लिखे उस तबके को ज्यादा दोषी मानता हूं, जो खुद अपने कर्तव्यो से दूर हो गया है। हमारा प्रभावी वर्ग अपनी बनाईं इस व्यवस्था का आनंद ले रहा है और बहुसंख्यक तबका अपनी रोजी रोटी की ही चिंता में लगा है। आज आपको नहीं लगता की जैसे जैसे हम आगे बढ़ रहे है जाति, धर्म की बात घटने की जगह बढ़ रही है। युवा राजनीति से दूर हो रहा है और राजनेताओ की नई पीढी विदेशों से पढ़ लिख कर राजनीति मे प्रवेश कर रही है। जिसे युवा राजनीति का नाम दिया जा रहा है, ये सब अकस्मात् नहीं है। अपने परिवार के भविष्य के लिये , राजनीति और देश के लिये हम मे निराशा व उदासीनता पैदा की जा रही है, अपना रास्ता बनाया जा रहा है ये आपको -हमको समझना होगा।
अपने देश की खातिर इस वर्ग पर अंकुश लगाने के लिये आगे आइये ,मैं राजनीति मे आने के लिये नहीं पर समाज मे अपनी प्रभावी भूमिका निभाने के लिये कह रहा हूं .... आप जहाँ है, जहाँ मौका मिले देश को जगाने की कोशिश करनी होगी ..वरना आलोचना का अधिकार भी हम छोड़ देगे। आप प्रयास प्रारम्भ कीजिये और विश्वास करना की एक चुनाव केवल देश के नाम पर देश के लिये लड़ा जायेगा।

Friday, May 8, 2009

जुगाड़ लालू का !!!!!!!!!!!




""प्रसिद्ध भारतीय आविष्कार "", लकडी के फ्रेम पर एक मोटर ,४ पहिये और एक स्टेरिंग -ब्रेक ......बन गया एक जुगाड़ .अभी तक सड़क पर ही चलते देखा था ना ,अब चलिये लालू की रेल पटरी पर भी देख लीजिये ....... , ये है लालू का जुगाड़ .रेवाडी के रेलवे स्टेशन पर....जब पहली बार देखा तो समझ नहीं पाया की ये है क्या ..गोर से देखने पर पता लगा कि ये तो तो जुगाड़ है ...रेल पटरी पर रोडी डालने के लिये इजाद किया गया है..








देख कर ताजुब भी हुआ ,गर्व भी और अफ़सोस भी ... ताजुब और गर्व इस लिये की ये पूरी तरह से भारतीय आविष्कार है और वह भी उन लोगो के हाथो से जिन लोगो ने किसी इंजीनियरिंग क्लास मे कभी प्रवेश भी नहीं लिया. अफ़सोस इसलिये की आज़ादी के 60 साल के बाद भी हम अपने हुनर का सम्मान करना नहीं सीख पाये है.,यदि जुगाड़ जेसी खोज भारत से बाहर हुई होती या किसी बडे कारपोरेट घराने की खोज होती ,तो क्या ये जुगाड़ ---जुगाड़ ही रहता ,शायद नहीं ..टाटा की नैनो की तरह शायद ये भी हिन्दुस्थान के मजदूरों , गाँवो मे काम करने वाले हजारो मिस्त्रियों को उनका सही मुकाम दिला पाता ......

Monday, May 4, 2009

प्रधानमंत्री .... हम भी है लाइन मे...

चुनाव का माहौल है.. राजनेता और उनके बयान भी बरसाती मेढ़क की तरह हर जगह हैं .....एक दूसरे पर अभूतपूर्व रूप से बेहतरीन शब्दों की बारिश की जा रही है। पर मैं इन "फूलो " या "बारिश " की बात नहीं करूंगा, कुछ बड़ी बात करते हैं.... बड़ी बात यानी प्रधानमंत्री, अभी तो प्रधानमंत्रियो की बाढ आई हुई है। हर कोई प्रधानमंत्री बनना चाहता है।
कल मेरे एक मित्र ने मुझ से पूछा की यार मंत्रियो को ही तो प्रधानमंत्री नहीं कहने लग गये हैं। समझ नहीं आ रहा है कि ये हो क्या रहा है। जब हम स्कूल में थे तो घर से कभी कभी 25-50 पैसे मिला करते थे, मेले मे जाने पर 2 से 5 रुपए। आज रोज 5-10रुपए और मेले मे 50-100 से कम में कोई बच्चा मानता ही नहीं है।.क्या मंत्री से प्रधानमंत्री भी ऐसा ही हो गया है। कैबिनेट, स्टेट लेवेल की तो बात छोड़ दीजिये कभी मंत्री ही बड़ी चीज थी। आज प्रधानमंत्री से कम मे कोई तैयार ही नहीं है। सांसद भले ही 10-15 हों, प्रधानमंत्री तो बनना ही है। कोई प्रधानमंत्री इन वेटिंग तो कोई राजकुमार का केयर टैकर, हर ग्रुप में एक नहीं 3-4 प्रधानमंत्री मौजूद हैं। लिस्ट भी है -अडवाणी, मनमोहन, राहुल गाँधी, नरेंन्‍द्र मोदी, मायावती, मुलायम, नीतीश, शरद पवार, करात, बुद्धदेव, चंद्रबाबू, नवीन पटनायक, जयाललिता और बहुत सारे घोषित -अघोषित भी अपने भाग्य के भरोसे हैं। क्या पता देवेगौडा और गुजराल की तरह किस्मत खुल जाए। 2009 में न सही तो 2014 में ही सही, वैसे आप को क्या लगता है कि अगला चुनाव 2014 में होगा........ मुझे तो नहीं लगता,
खैर अभी बात प्रधानमंत्री की........... ..तो भाई चुन लीजिये अपना प्रधानमंत्री आज नहीं तो कल, नहीं तो परसो कभी तो बन ही जाएंगे। वैसे तो उम्मीद पर ही दुनिया कायम है। पर एक बात यार............ हमारा नाम भी इस लिस्ट मे जुडवा दो हम तो 2014 के बाद के लिये भी तैयार हैं। बुरा मत मानो यार हम तो आप के नाम पर भी तैयार हैं।